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चलो नदी के किनारे चलते हैं... भोर के समय, जब सुबह की ओस नंगे पैरों को छूती है, तो हवा में ताजगी की गंध फैलती है, और चारों ओर कोई उपद्रव नहीं होता है - बस प्रकृति की आवाज़ होती है।